अनजानी थी मैं ना समझ थी मैं समझ ही ना पाई कहा गलत थी मैं ।
विश्वास करना ही शायद गलत था मेरा उम्मीद रखना ही शायद गलत था मेरा ।
सच को ही न देख पाई मैं और यूँ भी कह सकते है कि उन्देखा कर लाई मैं ।
उम्मीदों से सजा था मेरा मन का आशियाना ग्रहन लगा न देख पाई मैं मेरा आशियाना ।
आँखों को जब अभी भी मैं बंद करती हूँ उन सुन्दर सपनो में फिर से जी उठाती हूँ ।
यादो का ये सफ़र है बहुत ही सुहाना चन्द शब्दों में इनको क्या है बतलाना ।
तोहीन होगी मेरी उन सुन्दर यादो की जिनको मैंने अपना सब कुछ है माना ।
गुजारिस है मेरी लोगो से ये मेरी कहानी किसी को ना सुनाना ।
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विश्वास करना ही शायद गलत था मेरा उम्मीद रखना ही शायद गलत था मेरा ।
सच को ही न देख पाई मैं और यूँ भी कह सकते है कि उन्देखा कर लाई मैं ।
उम्मीदों से सजा था मेरा मन का आशियाना ग्रहन लगा न देख पाई मैं मेरा आशियाना ।
आँखों को जब अभी भी मैं बंद करती हूँ उन सुन्दर सपनो में फिर से जी उठाती हूँ ।
यादो का ये सफ़र है बहुत ही सुहाना चन्द शब्दों में इनको क्या है बतलाना ।
तोहीन होगी मेरी उन सुन्दर यादो की जिनको मैंने अपना सब कुछ है माना ।
गुजारिस है मेरी लोगो से ये मेरी कहानी किसी को ना सुनाना ।
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