Tuesday, July 30, 2013

अनजानी थी मैं ना समझ थी मैं समझ ही ना पाई कहा गलत थी मैं

अनजानी थी मैं  ना समझ थी मैं समझ ही ना पाई कहा गलत थी मैं ।
विश्वास करना ही शायद गलत था मेरा उम्मीद रखना ही शायद गलत था मेरा ।
सच को ही न देख पाई मैं और यूँ भी कह सकते है कि उन्देखा कर लाई मैं ।
उम्मीदों से सजा था मेरा मन का आशियाना ग्रहन लगा न देख पाई मैं मेरा आशियाना ।
आँखों को जब अभी भी मैं बंद करती हूँ उन सुन्दर सपनो में फिर से जी उठाती हूँ ।
यादो का ये सफ़र है बहुत ही सुहाना चन्द शब्दों में इनको क्या है बतलाना ।
तोहीन होगी मेरी उन सुन्दर यादो की जिनको मैंने अपना सब कुछ है माना ।
गुजारिस है मेरी लोगो से ये मेरी कहानी किसी को ना सुनाना ।


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